मालती उदास थी। विवाह हुये छः महीने हो चुके थे। विवाह के बाद से ही उसने किताबों को हाथ नही लगाया था। बड़ी मुश्किल से वह शादी के लिये तैयार हुई थी। बाबू जी का कहना था , "बिटिया, बाकी की पढ़ाई तुम ससुराल में ही करना"
ससुराल आने के पहले ही दिन मालती का ख्वाब धाराशाई हो गया था। पति श्याम लाल अनपढ़ थे। पंद्रह दिन ही बीते थे कि पति मुम्बई चले गये थे। पति मुम्बई में वॉचमैन (सिक्योरिटी गार्ड) थे। बार के गेट पर नाईट शिफ्ट की ड्यूटी करते थे। कमाई खूब थी। बार में आने वाले नोट पकड़ा जाते थे।
पति के मुम्बई जाने के बाद से मालती छः महीने ससुराल रही। वह बी. ए. फाईनल वर्ष में थी। दर्शन शास्त्र उसका पसंदीदा विषय था। अंतिम वर्ष का इम्तहान नजदीक था। उसने समझ लिया था। बी. ए. के बाद शायद ही आगे की पढ़ाई सम्भव हो पाये। तर्कशास्त्र की सारी युक्तियाँ समाप्त हो चुकी थी।
पति श्याम लाल को कस्टमर पैसे के साथ- साथ मुफ्त में शराब की बोतल पकड़ा देते थे। वह खुशी खुशी शराब घर ले आता। अब उसकी लत पड़ चुकी थी। संगत भी बिगड़ने लगी थी उसकी।
मालती की दूसरी विदाई अब होनी थी। श्याम लाल भी अब मुम्बई से आ चुका था। गॉव में एड्स चेकअप हेतु कैम्प लगा था। अगले दिन श्याम लाल ने भी अपना टेस्ट करवाया था। रिपोर्ट आने के बाद श्याम लाल के पॉजिटिव आने की खबर सारे गॉव में आग की तरह फैल गयी थी।
मालती के दूसरी विदाई के अब दो ही दिन ही बीते थे। एड्स की खबर सुनते ही उसके होश फाख्ता हो गये थे। उसने ससुराल न जाने का फैसला कर लिया था।
तीन महीने बाद सूचना मिली कि श्याम लाल दुनिया छोड़ चुके है। मालती उदास थी। पास के एक स्कूल में अध्यापन कर जीविका चलाने लगी। आगे की शिक्षा के लिये प्रोत्साहित थी।
मालती स्कूल सोचती हुई जा रही थी कि अब जमाना सिर्फ साक्षर होने का ही नही है वरन् अच्छी शिक्षा होने से भी है।
तभी ई-रिक्शा वाले की घंटी ने उसके अवचेतन मन को बाहरी दुनिया से जोड़ दिया था...... और तब तक वह स्कूल पहुँच चुकी थी....
मालती के जीवन में अब ठहराव आ गया था। स्कूल में बच्चों को बड़े मनोयोग से पढ़ाती थी। कुछ महीने बाद बी. ए. का परीक्षाफल घोषित हो गया था। स्कूल के अलावा शाम को घर पर ट्यूशन पढ़ाने लगी थी वों।
स्कूल में किसी को भी उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में खबर नही थी। वह उदास व गंभीर रहती।
स्कूल वालों का विश्वास उस पर बढ़ गया था। प्रबंधक उसके कार्य से प्रभावित होकर अन्य प्रबंधकीय कार्य सौंपने लगा। प्रबंधक युवा व अविवाहित था। एक दिन प्रबंधक ने उससे पूछ ही लिया था, "मालती, तुम विवाहित हो?"
मालती अचानक इस प्रश्न से सकपका गयी थी। बस हॉ ही बोल पायी थी।
अब प्रतिदिन प्रबंधक समय से आने लगे। दोनों की बातचीत भी खूब होने लगी।
एक दिन प्रबंधक उसके घर अचानक पहुँच गये। मालती के माता- पिता से उनकी मुलाकात हुई। बातचीत में मालती के विधवा होने का पता चला। अब प्रबंधक 2-4 दिन में मालती के घर आने लगे।
एक दिन प्रबंधक ने मालती का हाथ उनके पिता से माँग लिया। पिता क्या बोलते, "हामी भर दी थी"
हँसी- खुशी मालती का जीवन चल रहा था। पाँच वर्ष कब बीत गये मालती को पता ही नही चला।
इधर प्रबंधक उदास रहने लगे। उनकों पुत्र की अभिलाषा थी। क्रोध नाक पर आ गया था। मालती से कम बात करते थे। इतने बड़े घर में मालती उपेक्षित थी।
एक दिन किसी कार्य से अपने प्रबंधक पति से मिलने उनके चैम्बर तक गयी। अंदर से आवाज आ रही थी "तुम चिंता न करों। मैं उसके खाने में मीठा जहर मिला रहा हूँ। थोड़ा समय लगेगा पर अपना काम बन जायेगा।" वह नयी टीचर को बाहों में समेटे हुये थे।
अगली सुबह स्कूल में हड़कम्प मचा हुआ था। मालती की खोज जारी थी। प्रबंधक हतप्रभ थे।
मालती ने काशी के अनाथालय का रुख कर लिया था।
@डॉ विपिन "व्याकुल"