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शुक्रवार, 11 जून 2021

बोरसी का दूध

 

रात के दस बज चुके थे। मेरी बड़ी मॉ मुझे उठा रही थी। मै दिन भर का थका हुआ गहरी नींद में सो चुका था। उनींदा हालत में मै एक गिलास दूध हाथ में लिया और गट-गट पी गया। मै बस यहीं पूछ पाया किं चीनी है। उन्होनें हॉ में जवाब दिया था। दूध की मिठास और सोंधपन बता रही थी किं चीनी होना चाहिये। 



खैर!!! नींद की हालत में मष्तिष्क तर्क नही करता। मै सों गया। सुबह तक स्वाद बना रहा था। शहर के दूध का स्वाद कुछ अलग हुआ करता है और ये कैसा स्वाद। लग रहा था कुछ अमृत पी गया। गॉवों के हर घर में एक खिड़की हुआ करता है। खिड़की तो सिर्फ नाम का बोलते है वो निकासी का द्वार होता है जहॉ से महिलायें बैठा या निकला करती थी। सुबह देखा तों बोरसी (गॉवों में मिट्टी का पात्र जिस पर आग जला करती है) जो खिड़की के एक कोनें में अड्डा जमाये थी, जिस पर मट्टी का मटका दिखा। झाँक कर देखा तो मलाई की एक परत वो भी हल्कें पीले रंग की थी जों बरबस ही अपने तरफ खींच रही थी। बस फिर क्या था चम्मच लियें कटोरी भरा गया। आज भी उस दूध की मिठास याद करता हूँ तो मन प्रफुल्लित हो उठता है....

©️व्याकुल

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस बोरसी के दूध का स्वाद और उसके उपरी हिस्से में पड़ी साढ़ी (मलाई) का आनन्द भारत के उत्तरी राज्यो के लोगों (वह भी खासकर गाँवों मे रहने वाले लोगों) को बहुत ही पसन्दीदा है। जीवन में मुझे भी इसका स्वाद मिलनें का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।

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  2. Bahut hi anutha abhivyakti pes kiya hai sir apne.... Wastav me vorsi ka doodha ka maza hi alg hai....

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  3. नानी दादी का घर और बोरसी का दूध कैसे कोई भूल सकता हैं

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