अगर आपकी पैदाइश 60 या 70 के दशक में हुई हो और धर्मयुग से परिचित न हुये हो तो धिक्कार है आपकों। जैसे आज भी लोग गीता प्रेस की 'कल्याण' पढ़ने के लिये तरसते रहते है वैसा ही इतिहास धर्मयुग का रहा है। इसका प्रथम अंक 1950 में आया। इलाचंद्र जोशी व सत्यदेव विद्यालंकार इत्यादि के हाथो रहा। मै तो बहुत दिनो तक सोचता रहा ये पत्रिका धर्मवीर भारती की है। पूरक थे दोनो एक दूसरे के। 1950 से 1960 तक जितने पाठक बने सिर्फ 5 वर्षो में ही इसके उतने पाठक बन चुके थे। आज भी उसी साईज की कोई पत्रिका देखता हूँ तो बरबस ही धर्मयुग याद आ जाती है।
@व्याकुल
When Bhagat Singh and Azad planned to convert HRA into HSRA, then in its very first general meeting, Bhagat Singh delivered a speech. The main line was as under:
जवाब देंहटाएंHame sirf angrejo se aazadi nahi chahiye, hame angrejiyat se bhi aazadi chahiye. Wo apni sanskriti ko bhi apne sath lekar jaaye.
कहा भी जाता है भाषा का बहुत प्रभाव पड़ता है आपके दैनिक रहन सहन व विचारों पर। सहमत हूँ आपके विचारों से। शुक्रिया।
हटाएंAb to gaon k log bhi train me Safar karte samay times of India newspaper hi padhte h. Bhale hi kuchh bhi samajh me na aaye
जवाब देंहटाएंColonial system still existing..
हटाएंआपने साहित्यिक संस्कृति को याद दिलवाने व संजोने का बेहतर उदाहरण प्रस्तुत किया है l
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपको उत्साहवर्धन हेतु..
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