FOLLOWER

बुधवार, 23 मार्च 2022

खम्भा - कविता

 


घर के आँगन में कदम जो लड़खड़ायें थे

खम्भे को पकड़ लिया करता था मैं


छुपा लेता था खुद को दोस्तों से

छुपा-छुपी खेल में गोल-गोल खम्भे से


डेहरी की सीढ़ियों पर बाबा उतरे थे 

कोई पुत्र सा ये खम्भे सहारा बनी थी 

 

कलियुगी संस्कारों ने जो बाहर किया घरों से

बोतलों का पर्याय बना दिया दिवाने बेवड़ो ने


नाम लेने से इस कदर डरा हुआ है "व्याकुल"

बदनाम जो किया खम्भों को ज़माने ने।।


@व्याकुल

रविवार, 13 मार्च 2022

The Kashmir Files



"द कश्मीर फाईल्स" फिल्म की सोशल मीडिया पर चर्चा थी। खुद को देखने से कैसे रोक सकता था। कल दिनांक 11 मार्च को फिल्म देखना था पर टिकट उपलब्ध नही हो पाया। फिर कल शाम को ही आज के लिये टिकट लेना पड़ा। गज़ब की भीड़ थी आज। हिन्दुस्तान बदल रहा है।


हकीकत पर आधारित फ़िल्म। कैसे नरेटिव सेट होता आया भारत विरोधी गतिविधियों की। विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म में अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती व दर्शन कुमार का अभिनय गज़ब का रहा। दर्शन कुमार द्वारा कश्मीर को ज्ञान की स्थली के रूप में वर्णन रोमांच कर देने वाला था। कई बार फिल्म ने दर्शकों को रूलाया। कैप्शंस हिन्दी भाषीय जनमानस के लिहाज़ से हिन्दी में होता तो और बेहतर होता।


मुझे 2002 के कश्मीर चुनाव की यादों में ले गया ये फ़िल्म। कैसे रास्तों के किनारों पर कश्मीरी पंडितो के वीरान घर दिखे थे। हिन्दुस्तान में मील का पत्थर साबित होगा ये फिल्म। मै सुझाव दूँगा अवश्य फिल्म देखने जाये वो भी सिनेमाघरों में।

@विपिन "व्याकुल"

https://youtu.be/Sj7mSL1e0qA

बुधवार, 9 मार्च 2022

मुगालता




राबता उजालों पर क्या करना

सूकूँ तलाशने लगें अँधेरों को


दर्द जो दब गयी हँसी में

दॉव क्या लगाना चेहरों पर


साँसों ने भी तमाम उम्र देखा

दम घुट कर जो मुकर जाना है


बसेरा रह गया किनारों पर

बोली जो लग गयीं बाजारों में


शागिर्द था वों ताश के पत्तों का

खाली ही रहा जाने से पहले


मुगालते का टूट जाना ही था "व्याकुल"

क़रार भी खूब रहा फकीरी का


@व्याकुल

मंगलवार, 8 मार्च 2022

लेमनजूस टॉफी पाँच पैसे के

इसका भी जमाना था । इसका उपयोग या तो टॉफी खाने में करते थे या गेंद खरीदने के लिये चंदा के तौर पर।

पाँच पइसे के तीन लेमनजूस टॉफी मिल जाती थी । टॉफियों पर रैपर नही होता था । संतरा नुमा टॉफियों का स्वाद संतरा जैसा होता था । कुछ गोल टॉफियाँ भी आती थी जिस पर लाल-नीली-हरी धारी बना रहता था। 


रबर की गेंदे सस्ती होती थी पर उछाल बहुत लेती थी। कैनवास की गेंदे ज्यादा सही होती थी पर कैनवास महँगी होती थी। जेब में हाथ डाल चेक कर लिया करता था। गलती से फटी ज़ेब न हो बस।

@व्याकुल

मंगलवार, 1 मार्च 2022

नाता प्रथा

"नाता प्रथा" राजस्थान की पुरानी प्रथाओं में से एक है। आजकल प्रचलित "लिव-इन" का ही प्राचीन रूप कहा जा सकता है। यह गुर्जरों या कुछ ही जातियों तक सीमित है। इस प्रथा में विवाहित स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़ कर किसी के भी साथ रह सकती है बिना किसी रीति-रिवाज के। इसे "नाता करना" भी कहते है।

हो सकता है "नाता प्रथा" विधवाओं व परित्‍यक्‍ता स्त्रियों को सामाजिक मान्यता देने के लिये बना हो।

             चित्र: गूूगल से
इसमें हिंसा के बढ़ जाने से नकारात्मक रूप सामने आने लगा है। इस वजह से कुछ लोग कुप्रथा भी कहते है।

@व्याकुल

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

सूखे पत्ते


पतझड़

के मौसम

में

पेड़ से

गिरते

झरते

सूखे पत्ते...



तंद्रा

भंग करती

हर-पल

प्रतिपल

अहसास कराती

साथ होने का

जैसे

छाँव दिया था

कभी....


बसंत 

भले ही गढ़े

खुद को

नयेे कोपलों

से 

पर

ख्वाहिश

रहती

उन सूखे

पत्तों की

जो

गिरते रहे थे

सर पर

जैसे

बुजुर्ग सा

आशीर्वाद

दे रहे हो

काँपते-हिलते

हाथों से.....


@व्याकुल



बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

बिन्दौरी


राजस्थान में एक प्रथा बिन्दौरी के नाम से प्रचलित है। इसमे शादी के एक दिन पहले वर को घोड़े पर बैठाकर गाजे-बाजे के साथ सारे गाँव में घुमाया जाता है। इसमे वर के सारे मित्र व रिश्तेदार सम्मिलित होते है। इसमें जिस रास्तें से बिन्दौरी प्रथा निभाते है उस रास्ते से घर वापसी नही करता। 


               चित्र: गूगल से

राजस्थान के लिये यह सुखद है कि न सिर्फ वर वरन् वधु भी बिन्दौरी करती है। यह बेटियों द्वारा समाज में एक नयी दिशा दिखाने का कार्य करेगा।

@व्याकुल

रविवार, 20 फ़रवरी 2022

गुनाह



शक करते रहे थे उम्र भर

चुगली थी इस कदर गैरों की...


चर्चा शहर में आम हो गया

शहर फिर बदनाम हो गया..


वो इस कदर नादान थे

यूँ बेखबर हो हवाओं से..


रोकते भी कैसे खुद को

मचले अरमान थे अदाओं पे


"व्याकुल" खुद के भी न रहे

जो कातिल हो गये गुनाहों के..


@व्याकुल

महादेव

महाशिवरात्रि, भगवान शिव का प्रमुख पर्व है, हर वर्ष बड़े ही जोर शोर से मनाया जाता है इस पर्व पर आप सभी को नमन 💐🙏🏻


व्यक्त करूँ

वाणी से 

कैसे

या धृष्टता करूँ

देवो के देव

महादेव का

या पढ़ लू

शिव पुराण संहितायें

या पर्व 

मना लू

महाशिवरात्रि का

पर तिथि हो

फाल्गुन कृष्ण 

चतुर्दशी का...


किस रूप में मनाऊँ

माँ पार्वती की 

तपस्या समझु

या

वर्षगाँठ मनाऊँ

वैवाहिक

पवित्र सूत्र का

या 

प्रकाट्य लिंगरूप 

का..



शिव 

भुक्ति मुक्ति

दाता

महामृत्युंजय जप

काल बने

आसुरियों का

कौन फैलाये

भ्रान्ति ऐसे अजन्मा 

का....


बिछौना है

मृगछाला तेरा

निवास है

हिम चोटी

आराधना करे

सम जग तेरा

विस्मृत कर     

अपराध करे...


जग पुकारे

काम निहंता

अधुना जगत

लिप्त हो जिसमे

धारण हलाहल

करे कण्ठ में

नाम है

नीलकण्ठ जिसका...


कष्ट

भक्त का

द्रवित करे

जिसे

दानी बन

लुटा दे 

जो भोला 

रुष्ट हो

भस्म करे 

जग सारा...


सह न सके

विछोह

सती का

कर ताण्डव

जग हिलाये

धरा हिली

भूचाल आया

आवंदन करू

महेश्वर का...


रूद्र रूप

धर

करता 

दुख का नाश

कहे जाते जगत्स्वामी

लिंगम रूप

ब्रहांड का

मोहक हर

रूप तेरा

क्यो करे न नमन

जिसका...


वन्दन हो

उस

अनुग्रही का

सौम्य है

नृत्य देव

पंचामृत से

पूजा जाय

मस्तक सोहे

शीत चन्द्र सी

गले डाल 

साँप की माला

वीतरागी

कहा तू जायें

समाहित ब्रह्माण्ड 

उस अनादि में

जिनका जश

हर जन

गावें...

@व्याकुल

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

कलेवा - 2



राजन पर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वह बेचारा असहाय हो गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था किं उसकें साथ क्या हो रहा है। उसने नगीना फिल्म का एक गाना बहुत सुन रखा था,

"आज कल याद कुछ और रहता नहीं" 

गीत माला में यह गाना उसने कई बार सुना था। 

तभी उसको पता चला किं पुरानी बाजार के पास हीमांक टॉकीज में नगीना फिल्म लगी है। उसे वह फिल्म इतनी अच्छी लगी कि वह चारों शो प्रतिदिन देखने लगा। घर में पैसे नहीं थे। पाँच किलो गेहूं रोज घर से ले जाता था। उसे बेचकर फिल्म के चारों शो के टिकट खरीद लेता था और सुबह 11:00 बजे से लेकर रात को 12:00 बजे तक टॉकीज में बैठा नगीना फिल्म देखा करता था।

कभी-कभी रो पड़ता था वों। जब उसके कानों पर "भूली बिसरी एक कहानी" गानें की लाईन सुनाई पड़ती थी। बुश रेडियों के लिये तड़प उठता था वों।

उसके घर वाले बहुत ही परेशान थे नगीना फिल्म देखने के बहाने वह अपने दुःखी मन को कहीं बहला लेना चाहता था। कुछ दिन तक उसकी पत्नी को कुछ भी समझ नहीं आया था। जब उसकी पत्नी को लगा मैंने रेडियो को रास्ते से हटा कर बहुत बड़ी गलती की है। उसने ठान लिया था की मुंह दिखाई में मिली हुई रकम से राजन के लिए नई रेडियो ला कर देगी।


अगली बार मायके से ससुराल आते समय उसने राजन के लिए रेडियो खरीद लिया था उस दिन राजन के लिए खुशगवार सुबह थी जब उसने सुबह 6:00 बजे विविध भारती में भक्ति संगीत सुना था। 

अब क्या था राजन फिर से अपनी पुरानी रौ में आ चुका था। उसकी दुल्हन भी बहुत खुश थी किं राजन अब घर में ही रहने लगा है।

आज उसने जीप कम्पनीं की बैटरी भी थोक में खरीद लिया था।


@विपिन "व्याकुल"

धाकड़ पथ

 धाकड़ पथ.. पता नही इस विषय में लिखना कितना उचित होगा पर सोशल मीडिया के युग में ऐसे सनसनीखेज समाचार से बच पाना मुश्किल ही होता है। किसी ने मज...